ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है --------- इफ्तियार आरिफ
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं
जैसी बातें करते हैं------ इफ्तियार आरिफ
नहीं नहीं हमें अब तेरी जुस्तुजू भी नहीं
तुझे भी भूल गए हम तिरी ख़ुशी के लिए------------- जेहरा निगाह
देखते देखते इक घर के रहने वाले
अपने अपने ख़ानों में बट जाते हैं----------------- जेहरा निगाह
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