कौन जाके समझाये ख़ुदपरस्त दुनियाको
क्या सनम परस्ती है ,कया खुदापरस्ती है ---------- रवीश सिदिकी
हज़ार बार मुझे देख कर नहीं देखा
ये शोखिए निगहे इल्तेफात कम तो नहीं -------------रवीश सिदिकी
दुश्मनोकी गुफ्तगु क्या सुनूं के अब मुझे ,
दोस्तोंकी बातका ऐतबार तक नहीं ------- अखतर अंसारी
नकशे उल्फत के मिटकर निशां रह गये ,
हम कहां आ गये तुम कहां रेह गये ?--------रशि पटियालवी
तमाम उम्र कटी आसमां के साये में ,
किसी भी शाख पे हम आशियां बना न सके --------कमलाप्रसाद
जो काम आये किसीके तो जिंदगी दे दी ,
सितम तो ये हय के अपने भी काम आ न सके -------कमलाप्रसाद
कुच्छ इस तरह उलझे है गेसूए दौरां ,
खुदा ही संवारे तो इनको संवारे ------- महेशर नकवी
न कर अपने तलवों के छालो का कुछ गम ,
चलाचल मुसाफिर तू मन्ज़िल की धुनमें ,
रहे ज़िंदगीमें तवक्कु गुन्हा हय ,
न माना तो तुजह पर से गुज़रेंगे राही -------जिगर अहमदाबादी
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