खत कभी मेरा तु पढ़कर सोचना मुझे
कोई तेरी यादोंमें से उठा ले गया मुझे
यूँ ख्वाबोंका महल कोई ऐसे जला देता है
ऐ से लगता है धुएमें छू लिया मुझे
नामसे तेरे बिखरी है याद सारे घरमें
आँख खुली तो चहेरा खुदमें मिला मुझे
हर नफ़स कुछ माजरा हुआ इसी तरहेँ
हर भरम के बाद मिली है सजा मुझे
उन्हें तो दीवार घरकी यूँ ऊँची कर दी
कोई अपनों को भुलाके ले चला मुझे
मुकुल द्वे 'चातक '
नफ़स -पल
कोई तेरी यादोंमें से उठा ले गया मुझे
यूँ ख्वाबोंका महल कोई ऐसे जला देता है
ऐ से लगता है धुएमें छू लिया मुझे
नामसे तेरे बिखरी है याद सारे घरमें
आँख खुली तो चहेरा खुदमें मिला मुझे
हर नफ़स कुछ माजरा हुआ इसी तरहेँ
हर भरम के बाद मिली है सजा मुझे
उन्हें तो दीवार घरकी यूँ ऊँची कर दी
कोई अपनों को भुलाके ले चला मुझे
मुकुल द्वे 'चातक '
नफ़स -पल
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